लोक अदालत एक ऐसी अदालत होती है, जहाँ छोटे-मोटे विवाद आपसी सहमति से सुलझाए जाते हैं। यह एक वैकल्पिक न्याय प्रणाली है, जहाँ मामलों का निपटारा जल्दी, आसान और बिना ज्यादा खर्च के किया जाता है।
1982 में गुजरात में पहली लोक अदालत आयोजित हुई। 1987 में "कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम" के तहत इसे कानूनी मान्यता मिली। अब यह पूरे भारत में वर्किंग है और लाखों मामलों को हल कर चुकी है।
जल्दी और प्रभावशाली न्याय प्रदान करना। गरीब और जरूरतमंद लोगों को मुफ्त कानूनी सहायता देना। आपसी सहमति से विवादों को सुलझाना।
यहां केस लड़ने के लिए पैसे नहीं देने होते। सालों तक केस नहीं चलता, तुरंत समाधान मिलता है। दोनों पक्षों की सहमति से फैसला होता है। लोक अदालत का निर्णय अंतिम होता है।
पारिवारिक विवाद – तलाक, संपत्ति विवाद आदि। बैंक लोन विवाद – लोन चुकाने और बकाया से जुड़े मामले। दुर्घटना मुआवजा – सड़क दुर्घटना से जुड़े दावे। बिजली-पानी बिल विवाद – बिल भुगतान और जुर्माने से जुड़े मामले। भूमि विवाद – ज़मीन-जायदाद से जुड़े झगड़े।
सभी दस्तावेजो को तैयार रखें। समझौते के लिए तैयार रहें। वकील या सलाहकार से राय लें। नज़दीकी लोक अदालत के बारे में जानकारी प्राप्त करें।