रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) मीटिंग कल यानी मंगलवार से शुरू हो रही है। इसमें रेपो रेट में बदलाव को लेकर चर्चा हो सकती है। इसमें रेपो रेट कम होने की सम्भावना हैं। ऐसे में लोगों को लोन सस्ता मिलेगा। यह बैठक 8 अगस्त को खत्म होगी। रेपो रेट के अलावा इसमें और भी कई फैसले लिए जा सकते हैं।
कल से रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक शुरू होगी। 8 अगस्त तक मीटिंग चलेगी। इस बैठक में लोन को सस्ता करने सहित कई निर्णय लिए जा सकते हैं। फरवरी में पिछले वर्ष आरबीआई ने Repo Rate को 6.5% किया था। इसमें उसके बाद MPC की लगातार सात बैठकों में कोई बदलाव नहीं हुआ। अब मंगलवार को आठवीं बैठक शुरू होगी। इससे उम्मीद की जाती है, कि रेपो रेट में बदलाव होगा और लोन सस्ता करने वालों को राहत मिलेगी।
केंद्र ने रिटेल इंफ्लेशन को 4 पर्सेंट के आसपास लाने का काम RBI को सौंप दिया है। जून में, कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (Consumer Price Index) पर आधारित रिटेल इंफ्लेशन 5.08 प्रतिशत पर पहुंच गया था, जो पिछले साल के मुकाबले कम था। यह लगातार 57वें महीने तक 4% लक्ष्य से ऊपर रही। फूड इंफ्लेशन 8 महीनों से अधिक है। ‘आरबीआई ने दूसरी तिमाही में इंफ्लेशन 4 पर्सेंट से कम होने का अनुमान दिया है,’ BOB के प्रमुख इकॉनमिस्ट ‘मदन सबनवीस’ ने NBT को बताया। ऐसा होना मॉनसून पर निर्भर करेगा। आने वाले महीने कुछ कम इंफ्लेशन दिख सकते हैं, लेकिन यह मुख्य रूप से मूल कारक के कारण होगा। रेट घटाने का निर्णय अभी नहीं होगा।
ऊंचे Repo Rate पर भी GDP की तेज़ ग्रोथ है:
6.5 पर्सेंट के ऊंचे Repo Rate के बीच भी GDP ग्रोथ दमदार बनी हुई है। इकनोमिक सर्वे ने कहा-कि मौजूदा वित्त वर्ष में 7% तक ग्रोथ हो सकती है, बाद में वित्त वर्ष 2024 में 8.2% की ग्रोथ का अनुमान लगाया गया था। आरबीआई ने 7.2% वृद्धि का अनुमान लगाया है। ग्रोथ पर आंच आने से रेट कम करने का दबाव बढ़ सकता था। BOB के इकॉनमिस्ट अदिति गुप्ता ने कहा, “ग्रोथ दमदार होने से आरबीआई को यह गुंजाइश मिल गई है, कि महंगाई का प्रेशर लंबे समय तक घटने का भरोसा होने तक वह रेट को मौजूदा स्तर पर रख सकता है।
पिछली बैठक में यह निर्णय लिया गया था।
पिछली बैठक में MPC के छह सदस्यों में से चार ने मौजूदा स्तिथि बनाए रखने का पक्ष लिया था। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले महीने कहा था, कि रिटेल इंफ्लेशन चार प्रतिशत से अधिक है। ऐसे में इंटरेस्ट रेट को अभी कम करने की बात नहीं की जा सकती। Experts कहते हैं, कि आरबीआई कोई कार्रवाई करने से पहले सितंबर में उसके रुख को देखना चाहेगा क्योंकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में बदलाव नहीं किया है और सितंबर में बदलाव हो सकता है।
Repo Rate क्या होता हैं?
रेपो रेट वह ब्याज दर होती है, जिस पर देश का केंद्रीय बैंक (भारत में भारतीय रिज़र्व बैंक – RBI) वाणिज्यिक बैंकों को थोड़े समय के लिए धनराशि उधार देता है। जब बैंकों को अचानक पैसा की जरुरत होती है, तो वह अपने पास मौजूद सरकारी प्रतिभूतियों (गवर्नमेंट सिक्योरिटीज़) को केंद्रीय बैंक को बेचकर और एक निश्चित समय के बाद उन्हें फिर से खरीदकर पैसा प्राप्त करते हैं। इस प्रक्रिया को ‘रेपो ट्रांजैक्शन’ कहा जाता है और इस पर जो ब्याज दर लगती है उसे ‘Repo Rate ‘ कहते हैं।
Repo Rate का महत्वा क्या हैं?
- जब केंद्रीय बैंक Repo Rate को बढ़ाता है, तो बैंकों के लिए पैसा उधार लेना महंगा हो जाता है। इसका परिणाम यह होता है, कि बैंक अपने ग्राहकों को ज्यादा ब्याज दरों पर लोन देते हैं, जिससे बाजार में पैसों की सप्लाई कम होती है और कीमते नियंत्रित होती है।
- जब Repo Rate कम किया जाता है, तो बैंकों के लिए उधार लेना सस्ता हो जाता है और वह अपने ग्राहकों को कम ब्याज दरों पर लोन दे सकते हैं। इससे व्यवसायों और ग्राहकों को ज्यादा लोन मिल सकता है, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देती है।
- रेपो रेट का इस्तेमाल बैंकिंग प्रणाली में तरलता बनाए रखने के लिए भी किया जाता है। जब बैंकों को पैसों की जरुरत होती है, तो वह केंद्रीय बैंक से Repo Rate पर उधार लेकर अपनी तरलता की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।
- Repo Rate में परिवर्तन का प्रभाव निवेश और बचत पर भी पड़ता है। जब Repo Rate कम होती है, तो निवेश की लागत कम हो जाती है और ज्यादा लोग निवेश करने के लिए प्रेरित होते हैं। वहीं, उच्च Repo Rate बचत को बढ़ावा देती है, क्योंकि ब्याज दरें बढ़ जाती हैं।
Monetary Policy Committee (MPC) क्या होता हैं?
मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) एक ऐसा संगठन है, जिसे किसी देश की केंद्रीय बैंक द्वारा बनाई गई है, ताकि वह देश की आर्थिक नीति को नियंत्रित और प्रबंधित कर सके। भारत में, यह समिति भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India – RBI) के अधीन काम करती है। रेपो रेट और मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी का मुख्य उद्देश्य वस्तुओ की कीमतों को नियंत्रित करना और आर्थिक स्थिरता को बनाए रखना है।
Monetary Policy Committee की स्थापना कैसे हुई?
मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी का गठन 2016 में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में बदलाव के माध्यम से किया गया था। इससे पहले, Monetary Policy Committee के निर्णय मुख्य रूप से आरबीआई के गवर्नर द्वारा लिए जाते थे, लेकिन Monetary Policy Committee के गठन के बाद यह प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी बन गई।
Monetary Policy Committee में कुल छह सदस्य होते हैं:
- आरबीआई का गवर्नर (जो इसके अध्यक्ष होते हैं)
- आरबीआई के डिप्टी गवर्नर
- एक अन्य अधिकारी जो आरबीआई का होता है
- तीन बाहरी सदस्य जो केंद्र सरकार द्वारा नामित होते हैं
बाहरी सदस्यों का चयन उन एक्सपेर्टो में से किया जाता है, जिनके पास अर्थशास्त्र, बैंकिंग, वित्तीय बाजारों या आर्थिक नीति में विशेष ज्ञान होता है।
Monetary Policy Committee का महत्वा क्या हैं?
- Monetary Policy Committee का सबसे बड़ा योगदान वस्तुओ की कीमतों को नियंत्रित करना है। यह सुनिश्चित करती है, कि कीमते एक निश्चित सीमा के भीतर रहे, जिससे आर्थिक स्थिरता बनी रहे।
- Monetary Policy Committee के निर्णय अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखने में मदद करते हैं। यह वित्तीय बाजारों और निवेशकों के लिए पारदर्शिता प्रदान करती है।
- Monetary Policy Committee के माध्यम से, सरकार और आरबीआई के बीच बेहतर तालमेल स्थापित होता है, जिससे निर्णय लेना अधिक प्रभावी होता हैं।
- Monetary Policy Committee के निर्णय वित्तीय बाजारों पर सीधा असर डालते हैं। इसके निर्णयों के आधार पर शेयर बाजार, बांड बाजार और विदेशी मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव होते हैं।
Monetary Policy Committee की चुनौतियां क्या हैं?
- Monetary Policy Committee के सामने सबसे बड़ी चुनौती वस्तुओ की कीमतों को नियंत्रित करते हुए आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है। ज्यादा कठोर आर्थिक नीति विकास को रुकावट डाल सकती है, जबकि ज्यादा नरम आर्थिक नीति वस्तुओ की कीमतों को बढ़ा सकती है।
- विश्व की आर्थिक घटनाएँ, जैसे कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि, व्यापार युद्ध, और अन्य भू-राजनीतिक तनाव, भारतीय अर्थव्यवस्था और आर्थिक नीति पर प्रभाव डालते हैं। Monetary Policy Committee को इन घटनाओं को ध्यान में रखते हुए अपने निर्णय लेने होते हैं।
- Monetary Policy Committee के निर्णयों का आधार डाटा होता है। अगर डाटा में गलती होती हैं, तो निर्णय भी गलत हो सकते हैं। इसलिए, सटीक और समय पर डाटा की मौजूदगी जरुरी है।
- Monetary Policy Committee के निर्णयों के लम्बे समय के प्रभावों को समझना और उन्हें ध्यान में रखते हुए पालिसी से समबन्धित निर्णय लेना भी एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
निष्कर्ष:
Repo Rate केंद्रीय बैंक की एक महत्वपूर्ण आर्थिक नीति का उपकरण है, जिसका इस्तेमाल वस्तुओ की कीमतों को नियंत्रित करने, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और बैंकिंग प्रणाली में तरलता बनाए रखने के लिए किया जाता है। Repo Rate में परिवर्तन का प्रभाव लम्बा होता है, और यह आर्थिक गतिविधियों, निवेश, बचत और वस्तुओ की कीमतों पर सीधा असर डालता है।
Monetary Policy Committee भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके निर्णय वस्तुओ की कीमतों को नियंत्रित करने, आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और वित्तीय बाजारों को मज़बूत बनाए रखने में सहायक होते हैं। हालांकि, इसके सामने कई चुनौतियाँ भी होती हैं, जिन्हें सफलतापूर्वक पार करने के लिए इसे सटीक डाटा, विश्व की घटनाओं की समझ और लम्बे समय के प्रभावों की जांच करना जरुरी होता है। Monetary Policy Committee के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूती और विकास की दिशा में आगे बढ़ाने का प्रयास जारी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Ans: रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर देश का केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI), वाणिज्यिक बैंकों को थोड़े समय के लिए पैसे उधार देता है।
Ans: रेपो रेट का महत्व वस्तुओ की कीमतों में नियंत्रण, आर्थिक विकास, बैंकिंग प्रणाली में तरलता बनाए रखने, और निवेश व बचत पर असर डालने में है।
Ans: बैंक अपनी सरकारी प्रतिभूतियों (गवर्नमेंट सिक्योरिटीज़) को केंद्रीय बैंक को बेचते हैं और एक निश्चित समय के बाद उन्हें फिर से खरीदते हैं। इस प्रक्रिया पर जो ब्याज दर लगती है, वह रेपो रेट कहलाती है।