Loan Default: अधिकार, सजा, और कानूनी प्रक्रिया

Loan Default Adhikar Saza aur Kanooni Prakriya

Loan Default तब होता है जब एक व्यक्ति या फाउंडेशन किसी लोन के लिए निर्धारित शर्तों के अनुसार समय पर किश्तों का भुगतान नहीं कर पाती है। यह स्थिति तब  होती है जब उधारकर्ता अपने लोन का भुगतान नही करती, चाहे वह समय पर न कर पाए, या पूरी तरह से भुगतान न करे।

क्या होता है? जब उधारकर्ता लोन चुकाने में असमर्थ होता है

एक उधारकर्ता कई कारणों से अपना लोन चुकाने में असमर्थ हो सकता है और इसके कारण निमन्लिखित मुश्किलों का सामना करना पड़स सकता है:

उधारकर्ता के क्रेडिट स्कोर पर प्रभाव

लोन ना चुकाने का एक प्रमुख परिणाम यह है कि उधारकर्ता का क्रेडिट स्कोर काफी कम हो जाएगा।

ई एम आई(EMI) भुगतान में चूक या देरी करने से क्रेडिट स्कोर कम हो जाता है और उधारकर्ता की भविष्य की उधार लेने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे उसे भविष्य में आसानी से लोन नहीं मिल पाता।

लोन देने वाली संस्था द्वारा रिमाइंडर

प्रत्येक उधारकर्ता को लोनदाता संस्थान से एक निश्चित संख्या में रिमाइंडर और नोटिस प्राप्त करने का अधिकार है। यदि EMI में एक या दो बार देरी होती है, तो भुगतान में देरी के बारे में नोटिस भेजे जाते हैं।

हालांकि, अगर उधारकर्ता द्वारा अनुस्मारक और नोटिस पर ध्यान नहीं दिया जाता है और इसके बावजूद EMI का भुगतान नहीं किया जाता है, तो लोनदाता द्वारा आगे की कार्रवाई की जा सकती है जैसे उधारकर्ता को गैर-निष्पादित परिसंपत्ति या एनपीए के रूप में स्पष्ट करना। इससे उधारकर्ता भविष्य में किसी भी प्रकार का लोन या क्रेडिट प्राप्त करने से रोका जा सकेगा।

दंड और कानूनी कार्रवाई

यदि नोटिस और रिमाइंडर के बावजूद लोन का भुगतान नहीं होता है, तो लोनदाता उधारकर्ता पर जुर्माना लगा सकते हैं या कानूनी कार्रवाई भी कर सकते हैं।

कुछ दिनों के लिए भुगतान में हुई चूक को फिर भी ठीक किया जा सकता है, लेकिन यदि भुगतान एक या दो महीने से अधिक समय तक नहीं किया गया है, तो इससे गंभीर नुकसान हो सकता है।

यदि कोई सुरक्षा प्रदान किया गया है, तो इसे अपने कब्जे में लेकर लोन वसूलने के तरीके के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

लोन चूककर्ताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई

आरबीआई के आदेश के अनुसार, किसी भी समय उधारकर्ता के अधिकारों से समझौता नहीं किया जाएगा।

लोन चुकौती के मामले में अनुबंध का उल्लंघन कोई अपराध नहीं है, लेकिन लोनदाता इसकी वसूली के लिए सिविल न्यायालय में सिकायत दर्ज कर सकते हैं।

यदि लोन का भुगतान 180 दिनों से अधिक समय तक नहीं किया गया है, तो लोनदाता को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 138 के अंतर्गत उधारकर्ता के विरुद्ध मामला दर्ज करने की अनुमति है ।

कभी-कभी अनिवार्य परिस्थितियां उधारकर्ताओं को अपना लोन चुकाने से रोकती हैं। ऐसे मामलों को ‘धोखाधड़ी’ नहीं माना जाएगा, बल्कि ऋणदाता उधारकर्ता के साथ मिलकर पुनर्भुगतान की परिस्थितियों को संशोधित कर सकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लोन चुकाया जाए।

हालाँकि, यदि लोन समझौते पर हस्ताक्षर करते समय ही उधारकर्ता का इरादा धोखाधड़ी का साबित हो जाता है, तो चूककर्ता के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जा सकता है।

आरबीआई के अनुसार, ‘ विलफुल डिफॉल्टर ‘ वह व्यक्ति है जो निम्न कार्य करता है-

  • भुगतान करने की क्षमता होने के बावजूद चूक
  • लोन या धन का विचलन
  • लोनदाता की जानकारी के बिना सुरक्षा के रूप में प्रदान की गई सुरक्षा संपत्ति का निपटान या हस्तांतरण

उपरोक्त में से किसी भी बात का उल्लंघन होने पर दोषी के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

लोन डिफॉल्‍टर के अधिकार

1. लोन न चुकाने की स्थिति में कर्जदाता अपना लोन वसूलने के लिए रिकवरी एजेंटों की सेवाएं ले सकते हैं। लेकिन, इन रिकवरी एजेंट्स को ग्राहक को धमकाने या बल का प्रयोग करने का अधिकार नहीं है। अगर रिकवरी एजेंट्स ग्राहक से किसी तरह की बदसलूकी करते हैं तो ग्राहक इसकी शिकायत बैंक में दर्ज करवा सकते हैं। बैंक से सुनवाई न होने पर बैंकिंग लोकपाल का दरवाजा खटखटाया जा सकता है।

2. बैंक बिना प्रोसीजर फॉलो किये आपके एसेट को अपने कब्‍जे में नहीं ले सकता । इसकी एक निश्चित प्रक्रिया है। जब उधार लेने वाला 90 दिनों (3 months) तक लोन की किस्‍त नहीं चुकाता, तब खाते को नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) में डाला जाता है। हालांकि इस तरह के मामले में कर्ज देने वाले को डिफॉल्टर को 60 दिन(2 months) का नोटिस जारी करना पड़ता है। अगर नोटिस पीरियड में भी वो लोन जमा नहीं करता है, तब बैंक एसेट की बिक्री के लिए आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन बिक्री के मामले में भी बैंक को 1 month यानी ३० दिनऔर का पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ता है।

3. बैंक या  आर्थिक संस्थान जहां से आपने लोन लिया है, उसको एसेट की बिक्री से पहले उसका उचित मूल्य बताते हुए नोटिस जारी करना पड़ता है। इसमें रिजर्व प्राइस, तारीख और नीलामी के समय का भी जिक्र करना जरूरी होता है। अगर उधारकर्ता को लगता है कि एसेट का दाम कम रखा गया है तो वह नीलामी को चुनौती दे सकता है।

4. उधारकर्ता को अपनी नीलामी की प्रक्रिया पर नजर रखने की ज़रूरत होती हैं क्‍योंकि आपके पास लोन की वसूली के बाद बची अतिरिक्त रकम को पाने का अधिकार होता है। निलामी के बाद जो लोन के अलावा राशी बची होती है ,वो बैंक को उधारकर्ता को वापिस करना पड़ता है ।

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लोन डिफॉल्टर्स के लिए सजा क्या है?

1. पंजीकृत डिफॉल्टर्स पर सजा

1.1. सिविल मुकदमे 

अगर कोई व्यक्ति लोन की किस्तों का भुगतान नहीं करता, तो बैंक या आर्थिक संस्था सिविल मुकदमा दर्ज कर सकती है। अदालत में प्रस्तुत की गई सबूत और दस्तावेजों के आधार पर अदालत लोन डिफॉल्टर को बकाया राशि चुकाने का आदेश दे सकती है। यदि डिफॉल्टर आदेश का पालन नहीं करता, तो अदालत बैंक की ओर से संपत्ति को अटैच करने का आदेश दे सकती है।

1.2. बगैर संपत्ति की वसूली

 यदि डिफॉल्टर की संपत्ति अटैच नहीं की जा सकती, तो अदालत बैंक को अन्य उपायों जैसे कि वेतन की वसूली या अन्य आर्थिक लेनदेन के जरिए रकम वसूलने का आदेश दे सकती है।

2. क्रिमिनल सजा

2.1. धोखाधड़ी के मामले 

यदि लोन डिफॉल्ट का मामला धोखाधड़ी, जालसाजी या अन्य आपराधिक गतिविधियों से जुड़ा होता है, तो संबंधित अपराधी के खिलाफ क्रिमिनल केस दर्ज किया जा सकता है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 406 (आस्था का उल्लंघन) के तहत ऐसे मामलों में अभियोग चलाया जा सकता है।

2.2.लोन की शर्तों का उल्लंघन 

यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर लोन की शर्तों को नही मानता है और इससे बैंक को आर्थिक नुकसान होता है, तो उसे गंभीर अपराध माना जा सकता है। इस स्थिति में भी कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

3. क्रेडिट स्कोर पर प्रभाव

3.1. क्रेडिट स्कोर में कमी

 लोन डिफॉल्टर्स का क्रेडिट स्कोर प्रभावित होता है। खराब क्रेडिट स्कोर के कारण भविष्य में किसी भी प्रकार के लोन मिलने में कठिनाई हो सकती है। यह व्यक्ति की आर्थिक प्रतिष्ठा पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

3.2. क्रेडिट रिपोर्ट में नकारात्मक अंकन 

Loan Default का असर क्रेडिट रिपोर्ट पर पड़ता है, जिससे भविष्य में बैंकिंग और आर्थिक लेनदेन में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

4.अधिकारों और कर्तव्यों की जानकारी

4.1. लोन एग्रीमेंट की शर्तें

 लोन डिफॉल्टर्स को लोन एग्रीमेंट की शर्तों और नियमों की जानकारी होनी चाहिए। किसी भी प्रकार की Loan Default के मामले में कानूनी अधिकार और कर्तव्य जानना ज़रूरी होता है।

4.2. फाइनेंशियल रेगुलेटर्स से संपर्क 

यदि लोन डिफॉल्ट के कारण समस्या बढ़ जाती है, तो आपको भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) या अन्य आर्थिक रेगुलेटर संस्थाओं से संपर्क करना चाहिए। ये संस्थाएं लोन डिफॉल्टर्स के अधिकारों की रक्षा करती हैं और अनुचित या गलत प्रथाओं के खिलाफ कार्रवाई करती हैं।

5. दंडनीय प्रावधान

5.1. उपभोक्ता फोरम

 यदि डिफॉल्टर्स को बैंक या आर्थिक संस्थाओं द्वारा गलत तरीके से परेशान किया जाता है, तो वे उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर सकते हैं। यह फोरम उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों की रक्षा करने में मदद करता है और अनुचित प्रथाओं के खिलाफ निर्णय दे सकता है।

5.2. बैंकिंग लोकपाल 

यदि किसी Loan Default को बैंक द्वारा उचित समाधान नहीं मिल रहा है, तो वे बैंकिंग लोकपाल के पास भी शिकायत कर सकते हैं। बैंकिंग लोकपाल लोन डिफॉल्टर्स के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करता है और शिकायतों का निवारण करता है।

निष्कर्ष:

Loan Default की स्थिति में उधारकर्ताओं को विभिन्न कानूनी और आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। समय पर लोन की किश्तें न चुकाने पर न केवल क्रेडिट स्कोर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, बल्कि सिविल और क्रिमिनल मुकदमे भी दर्ज किए जा सकते हैं। इससे उधारकर्ता की भविष्य की आर्थिक संभावनाओं पर गहरा असर पड़ता है, जिससे नए लोन की स्वीकृति में कठिनाई हो सकती है।

हालांकि, कानूनी प्रावधान उधारकर्ताओं के अधिकारों की भी रक्षा करते हैं, जैसे कि उचित प्रक्रिया के बिना संपत्ति की बिक्री या गैर-कानूनी उत्पीड़न के खिलाफ सुरक्षा। ऐसे में, लोन चुकौती की स्थिति को समय पर समझना और उपयुक्त कानूनी विकल्पों की जानकारी रखना अत्यंत आवश्यक है। सही समय पर उचित कार्रवाई से न केवल मौजूदा समस्याओं को हल किया जा सकता है, बल्कि भविष्य में वित्तीय स्थिरता भी सुनिश्चित की जा सकती है। इसलिए, वित्तीय जिम्मेदारियों को गंभीरता से लेना और उपलब्ध कानूनी संसाधनों का उपयोग करना हर उधारकर्ता के लिए आवश्यक है।

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